पिता के कंधो पर बोझ भारी है, कुछ काम आने की अब बारी तुम्हारी है। ना बनाओ पिता को भगवान अपना, उनको बस अपनी जिम्मेदारी प्यारी है। रहने दो थोड़ा सा गलत उन्हें भी, बडप्पन दिखाने कि उम्र तुम्हारी है। जो लेने लगे हो फैंसले घर के, याद रखना, ये सारी समझ उधारी है। भूल जाते है अक्सर चश्मा रख कर, फिकर तुम्हारी अभी भी जारी है। थोड़ा रुक कर चलने लगे हैं, तुम रहना साथ ही, वही हाथ उनका, वही उंगली तुम्हारी है। मेहफ़ूज़ रखते है मुकद्दर तुम्हारा, पिता से हरएक मुश्किल हारी है।